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कविता

आए जोग सिखावन पाँड़े

सूरदास


आए जोग सिखावन पाँड़े।
परमारथी पुराननि लादे, ज्यौ बनजारे टाँड़े।
हमरे गति-पति कमलनयन की, जोग सिखैंते राँड़े।
कहौ मधुप कैसे समाहिंगे, एक म्यान दो खाँड़े।
कहु षट्पद कैसै खैयतु है, हाथिनि कैं संग गाँड़े।
काकी भूख गई बयारि भषि, बिना दूध घृत माँड़े।
काहै कौ झाला लै मिलवत, कौन चोर तुम डाँड़े।
सूरदास तीनौ नहिं उपजत, धनिया, धान, कुम्हाँड़े।।


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